आज दिनांक 27/01/2011 को मैं अपने बेटे गगन जैन के जन्मदिन की खुशियाँ मनाने के साथ ही गगन जैन को उसके दूसरे जन्मदिन उत्सव पर समस्त "शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन" परिवार की ओर से जन्मदिन की मुबारकबाद देते हुए ढ़ेरों शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ. इन्हीं शब्दों के साथ ही.. तुम सदा खुश रहो और स्वस्थ रहो. यही मेरे दिल की कामनाएं है.
क्या हुआ अगर तुम मेरे पास नहीं हो,
मगर तुम्हारी रगों में मेरा खून ही है.
कभी-कभी हो सकता है खून-खून से दूर हो,
मगर ऐसा हो नहीं सकता, खून से खून जुदा हो
बेटा! मैं तुमसे क्या कहूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है. मैंने मात्र तुम्हारा जीवन ही बचाने के लिए इतने कष्ट सहन किये हैं. जिनका उल्लेख शब्दों में नहीं किया जा सकता है. मगर आज तुम कुछ समझने के लायक नहीं हो. इसलिए मैं तुम्हें बता नहीं सकता हूँ. आज तुम्हारी फोटो (जब तुम सात महीने के थें ) को देखकर ही संतोष कर लेता हूँ. जब तक तुम पांच साल के नहीं हो जाते हो. तब तक मुझे तुम्हारा संरक्षण प्राप्त नहीं हो सकता है क्योंकि हमारी न्याय व्यवस्था में नियम है. चाहे बेशक तुम्हें तुम्हारी नाना-नानी, मामा-मौसी और तुम्हारी माता मारें. जब तुम्हारी माता तुम्हें मात्र 20 दिन के को भी मार सकती हैं, सिर्फ इसलिए कि-तुम सर्दी के दिनों में कई-कई बार पेशाब कर देते थें और बार-बार मल कर देते थें या फिर तब जब मैं तुम्हारी माता को तुम्हारी नानी के घर हर दूसरे दिन जाने से मना करता था. मेरे पास इतने पैसे भी नहीं है कि-किसी नामी-गिरमी वकील को करके कोर्ट से संरक्षण प्राप्त कर लूँ. इसलिए बेटा मैंने अपने दिल पर पत्थर रख रखा है.
बेटा! मैं तुमसे क्या कहूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है. मैंने मात्र तुम्हारा जीवन ही बचाने के लिए इतने कष्ट सहन किये हैं. जिनका उल्लेख शब्दों में नहीं किया जा सकता है. मगर आज तुम कुछ समझने के लायक नहीं हो. इसलिए मैं तुम्हें बता नहीं सकता हूँ. आज तुम्हारी फोटो (जब तुम सात महीने के थें ) को देखकर ही संतोष कर लेता हूँ. जब तक तुम पांच साल के नहीं हो जाते हो. तब तक मुझे तुम्हारा संरक्षण प्राप्त नहीं हो सकता है क्योंकि हमारी न्याय व्यवस्था में नियम है. चाहे बेशक तुम्हें तुम्हारी नाना-नानी, मामा-मौसी और तुम्हारी माता मारें. जब तुम्हारी माता तुम्हें मात्र 20 दिन के को भी मार सकती हैं, सिर्फ इसलिए कि-तुम सर्दी के दिनों में कई-कई बार पेशाब कर देते थें और बार-बार मल कर देते थें या फिर तब जब मैं तुम्हारी माता को तुम्हारी नानी के घर हर दूसरे दिन जाने से मना करता था. मेरे पास इतने पैसे भी नहीं है कि-किसी नामी-गिरमी वकील को करके कोर्ट से संरक्षण प्राप्त कर लूँ. इसलिए बेटा मैंने अपने दिल पर पत्थर रख रखा है.
तुम्हें अपनी मजबूत बाँहों का सहारा देकर कदम-दर-कदम तुम्हारे साथ चलने व तुम्हारे लिए घोड़ा बनकर घुमाने के इच्छूक, तुमसे मिलने से भी मजबूर (तुम्हारी माता और नाना-नानी, मामा-मौसी, मौसी-मौसा की वजह से) अपने पापा को प्लीज़ माफ़ कर देना बेटा.