बेटा! मैं तुमसे क्या कहूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है. मैंने मात्र तुम्हारा जीवन ही बचाने के लिए इतने कष्ट सहन किये हैं. जिनका उल्लेख शब्दों में नहीं किया जा सकता है. मगर आज तुम कुछ समझने के लायक नहीं हो. इसलिए मैं तुम्हें बता नहीं सकता हूँ. आज तुम्हारी फोटो (जब तुम सात महीने के थें ) को देखकर ही संतोष कर लेता हूँ. जब तक तुम पांच साल के नहीं हो जाते हो. तब तक मुझे तुम्हारा संरक्षण प्राप्त नहीं हो सकता है क्योंकि हमारी न्याय व्यवस्था में नियम है. चाहे बेशक तुम्हें तुम्हारी नाना-नानी, मामा-मौसी और तुम्हारी माता मारें. जब तुम्हारी माता तुम्हें मात्र 20 दिन के को भी मार सकती हैं, सिर्फ इसलिए कि-तुम सर्दी के दिनों में कई-कई बार पेशाब कर देते थें और बार-बार मल कर देते थें या फिर तब जब मैं तुम्हारी माता को तुम्हारी नानी के घर हर दूसरे दिन जाने से मना करता था. मेरे पास इतने पैसे भी नहीं है कि-किसी नामी-गिरमी वकील को करके कोर्ट से संरक्षण प्राप्त कर लूँ. इसलिए बेटा मैंने अपने दिल पर पत्थर रख रखा है.
आज हाईटेक दुनियां की भाग-दौड़ में अपने प्रियजनों व रिश्तेदारों को भूलते जा रहे हैं.आज हम उन रिश्तों को भी भुलाते जा रहे हैं.जो हमारे जन्म होने के बाद या विवाह के बाद बनते हैं.वैसे तो हर एक इंसान का हर दुसरे इंसान से इंसानियत का रिश्ता है.मगर हम आज"इंसानियत" जैसे पवित्र शब्द की गरिमा को भुलाते जा रहे हैं."इंसानियत" जैसे पवित्र शब्द की गरिमा को बनाये रखने हेतु ही "प्रकाशन" परिवार ने एक ब्लॉग बनाकर अपने सभी रिश्तेदारों को एक मंच पर एकत्रित करने की एक छोटी-सी कोशिश की.
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गुरुवार, जनवरी 27, 2011
जन्मदिन की मुबारकबाद
बेटा! मैं तुमसे क्या कहूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है. मैंने मात्र तुम्हारा जीवन ही बचाने के लिए इतने कष्ट सहन किये हैं. जिनका उल्लेख शब्दों में नहीं किया जा सकता है. मगर आज तुम कुछ समझने के लायक नहीं हो. इसलिए मैं तुम्हें बता नहीं सकता हूँ. आज तुम्हारी फोटो (जब तुम सात महीने के थें ) को देखकर ही संतोष कर लेता हूँ. जब तक तुम पांच साल के नहीं हो जाते हो. तब तक मुझे तुम्हारा संरक्षण प्राप्त नहीं हो सकता है क्योंकि हमारी न्याय व्यवस्था में नियम है. चाहे बेशक तुम्हें तुम्हारी नाना-नानी, मामा-मौसी और तुम्हारी माता मारें. जब तुम्हारी माता तुम्हें मात्र 20 दिन के को भी मार सकती हैं, सिर्फ इसलिए कि-तुम सर्दी के दिनों में कई-कई बार पेशाब कर देते थें और बार-बार मल कर देते थें या फिर तब जब मैं तुम्हारी माता को तुम्हारी नानी के घर हर दूसरे दिन जाने से मना करता था. मेरे पास इतने पैसे भी नहीं है कि-किसी नामी-गिरमी वकील को करके कोर्ट से संरक्षण प्राप्त कर लूँ. इसलिए बेटा मैंने अपने दिल पर पत्थर रख रखा है.
2 टिप्पणियां:
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एक इंसान और हँसते-खेलते परिवार के दुःख की कहानी सुनाती पोस्ट........काश भ्रष्टाचार और स्वार्थ बेशर्मी के स्तर पे नहीं होता तो पुलिस और न्यायलय ऐसे दुखों को मानवता के नाते हल करता.......भ्रष्टाचार एक राष्ट्रिय आपदा है......हर किसी के लिए ......30 जनवरी को मिंटो रोड के बगल वाले रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के खिलाप जनयुद्ध में दोपहर एक बजे जरूर आइये रमेश जी....आपके बच्चे को जन्दीन की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें की वह बरा होकर इस परिवार के तथा आपके दुःख दूर करे....
जवाब देंहटाएंरमेश जी बहुत दुख हुआ आपकी इस पोस्ट को पढकर परन्तु जैसा जय कुमार झा जी ने कहा की ये भ्रष्टाचार और स्वार्थ इतना व्याप्त हो चुका है की हमें इसे खत्म करने के लिए जूर कोइई आवश्यक कदम उठाने होंगे ! वैसे देर से ही सही परन्तु आपके बेटे को बहुत बहुत आशीर्वाद की वो बड़ा होकर आपसे भी कई गुना आगे निकले !
जवाब देंहटाएंसंजय राणा हिमाचल
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